तस्मिया में आयोजित हुआ जलसा “सीरत-उन-नबी” 

"Seerat-un-Nabi" gathering organized in Tasmiya

देहरादून। सीरत उन नबी कमेटी देहरादून की ओर से एक रूहानी और प्रेरणादायक कार्यक्रम “सीरत-उन-नबी” का आयोजन टर्नर रोड स्थित तस्मिया पवित्र क़ुरआन संग्रहालय में किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ समाजसेवी डॉ. एस. फारूक ने की। इस मौके पर अनेक मशहूर उलेमा-ए-कराम और इस्लामी विद्वानों ने शिरकत की और हुजूर सरवर-ए-कायनात हज़रत मुहम्मद मुस्तफा ﷺ की सीरत-ए-पाक और इंसानियत के लिए उनके पैग़ाम पर रोशनी डाली।

कार्यक्रम का आगाज़ मौलाना असरार अहमद की तिलावत-ए-क़ुरआन और सय्यद शहजादे की नात-ए-पाक से हुआ, जिसने माहौल को नूरानी बना दिया। हाफिज हुसैन साहब पीर जी  ने कहा कि “क़ुरआन हमारे पास एक अमानत है, इसमें किसी तरह की ख़यानत नहीं होनी चाहिए।” उन्होंने कुरआन की तालीम को समझने और उस पर अमल करने की अहमियत को रेखांकित किया।

मुख्य वक्ता मुफ्ती ज़कावत क़ासमी (शैख़-उल-हदीस, मदरसा अमीनिया, दिल्ली) ने नबी करीम मोहम्मद साहब की सीरत पर तफसीली रोशनी डालते हुए कहा कि “हुजूर तमाम इंसानियत के लिए रहमत बनकर आए।” उन्होंने पैग़ंबर की पैदाइश से पहले के जमाने की सामाजिक, धार्मिक और नैतिक गिरावट का ज़िक्र करते हुए बताया कि किस तरह आप ने इंसानों को बराबरी का दर्जा दिया और सामाजिक इंसाफ की बुनियाद रखी। उन्होंने इंसानियत, शिक्षा और खिदमते-खल्क की अहमियत पर भी प्रकाश डाला।

मुफ्ती सलीम क़ासमी ने पैगंबर मोहम्मद साहब की शिक्षाओं पर आधारित एक प्रेरणादायक मुक़ालमा पेश किया, जिसमें इंसानियत, मोहब्बत और खिदमत को ज़िंदगी का मकसद बताया गया। अध्यक्षीय भाषण में डॉ. एस. फारूक ने कहा कि “क़ुरआन हमारी निजात का ज़रिया है।

इसे समझ कर, सोच कर और अमल करके ही हम अपनी ज़िंदगी को कामयाब बना सकते हैं।” उन्होंने इंसानों के हुक़ूक़, मां-बाप की सेवा और बच्चों को सही तालीम देने की बात पर जोर दिया। साथ ही नशे, बुराइयों और फिल्मी असरात से बचने की सलाह दी। इस मौके पर हाफिज असद को कुरआन मुकम्मल करने पर दस्तारबंदी कर सम्मानित किया गया, जिसे उपस्थित लोगों ने सराहा।

मौलाना कबीरुद्दीन फ़ारान ने कुरआन की फजीलत बयान करते हुए इसे रोशनी का सरचश्मा बताया। उन्होंने कहा कि “क़ुरआन सिर्फ मुसलमानों के लिए नहीं, बल्कि पूरी इंसानियत के लिए हिदायत है।

शहर क़ाज़ी मौलाना मोहम्मद अहमद क़ासमी की पुरखुलूस दुआ के साथ यह रूहानी जलसा सम्पन्न हुआ। इस तरह के कार्यक्रम समाज में एकता, इंसानियत और आध्यात्मिक मूल्यों को मजबूत करते हैं। सीरत उन नबी कमेटी का यह प्रयास सराहनीय है, जो नई पीढ़ी को सच्ची राह दिखाने में मददगार साबित होगा।

इस मौके पर शहर क़ाज़ी मौलाना मोहम्मद अहमद क़ासमी, मौलाना रिसालुद्दीन हक्कानी, मौलाना कबीर उद्दीन, मुफ्ती नाजिम अशरफ, मौलाना एजाज़, मुफ्ती वसी उल्लाह, मुफ्ती जिया उल हक, मौलाना गुलशेर क़ासमी, मौलाना क़ासिम क़ासमी, मौलाना असद क़ासमी, कारी एहसान, कारी शाहवेज, हाफिज गुलज़ार, कारी वसीम, कारी मुबारक, कारी फरहान मलिक, मौलाना महताब क़ासमी, मौलाना रागिब मजाहिरी, मौलाना मंजर अलम, मोहम्मद इम्तियाज, मुफ्ती मुस्तफा क़ासमी, मौलाना अब्दुल रब नदवी, इनाम अली, अशरफ हाशमी, डॉ ताहिर अली समेत बड़ी संख्या में लोग मौजूद रहे।

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